"सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा था,
छोड़ा था खुशियों से भरा आशियाना...।
अपनी चाहतें, ढ़ेरों अरमान,
अधूरी ख्वाहिशें और बचपना...।
सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा कभी,
छोड़ आईं अपना अल्हड़पन,
चंचलता, इतराना, ज़िद और शरारतें;
रूठना और खुल कर मुस्कुराना।
सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा था,
छोड़ दिया था अपना अस्तित्व,
मान-सम्मान, पद और प्रतिष्ठा,
खुश रहने की वजह छोड़ आए थे।
सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा था,
अपनी खुशियों की अर्थी फूँक आए थे...।
हमने छोड़ा कहाँ था,
हमें ये अधिकार कहां था।
घर ने ही हमें अलविदा कहा था..।
सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा था,
अपने लिए कुछ करना छोड़ आए थे,
आँचल में खुशियाँ समेटना छोड़ आए थे,
मुश्किलों में घबराना छोड़ आए थे।
सिर्फ़ घर ही नहीं छोड़ा था...।।"
अम्बिका झा 👏
-Ambika Jha