Hindi Quote in Poem by आशा झा Sakhi

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यादों के  मौसम में  भी कोई
मौसम यूँ पतझड़ का होता
झड़ जाती फिर यादें सारी
न पल कोई स्मृति में रहता
हरी- भरी यादों की पत्तियाँ
बिना नमी के सूख ही जाती
नहीं भिगाती नयनों को मेरे
सूखे पत्तों सी  झड़ जाती
गिरती धरती पर फिर ऐसे
नहीं अस्तित्व कभी था जैसे
उड़ कर समय की आँधी में
टूट कर बहुत दूर उड़ जाती
चाहकर  कभी भी मेरे
वसंत के जैसे पास न  आती
पतझड़ जैसे सब झड़ जाती
कभी मुझे न यूँ तड़पाती।।

-Sakhi

Hindi Poem by आशा झा Sakhi : 111628872
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