देर से ही सही
समझ तो आया
समय के रहते
क्या - क्या गंवाया
आज खड़े हैं यूं
मौन से पड़े हैं
तभी एक विचार
मन में है आया
देर हुई है ज़रूर
मगर समय अब भी है
कुछ कर दिखाने का
हुनर अब भी है
यही सोच, कुछ ठान
मैंने एक बार फिर
अपना कदम है बढ़ाया
-अनुभूति अनिता पाठक