My Wonderful Poem...!!!
यारों न कोई भी हिंदू न मुसलमाँ बुरा है
जो बंदे नफ़रत सिखाए वो इंसाँ बुरा है
सियासत में हरगिज़ न इन को घसीटो
बाइबल न गीता बुरी है न कुर्आं बुरा है
मासुम लहू जो बहाता है निर्दोष जन का
यकीनन पोशीदा अधर्मी वो शैतां बुरा है
उजाड़े नशेमन परिंदों का नाहक बेवजह
उखाड़े शजर जो वो क्षणिक तूफ़ा बुरा है
जो बस्तियों में बसी हस्तियों को जलाएँ
सैलाब-ए-ग़लतफ़हमि का धुँआ बूरा हैं
सदियों से शहीद होते आए आम जन
हुक्मरानों का निष्ठुर व्यवहार ही बूरा हैं
क्षण-भंगुर अधर्मी दयाहीन मक़सद के
नाम बलि जो चढ़ाए वह हूंकार बूरा हैं
प्रभुजी की लाठी मे आवाज़ नही होती
चीन की देन या जो भी हो कोरोना बूरा हैं
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