कड़वा है पर सच यही है कि हमारी ज़िंदगी से किसी का कोई सरोकार नहीं है।और ना ही किसी को हमारे ज़िंदगी से फ़र्क़ पड़ता है कि हम किस हालात और परिस्थिति से गुज़र रहे हैं।ख़ुद के हालातों से लड़ना और ज़िंदगी में आगे बढ़ना पड़ता ही है।कोई साथ नहीं देता बस सब कहने भर का एक भीड़ और कारवां है।
कभी कभी हम हालातों से हारते नहीं है बस बेबस हो जाते हैं और ख़ुद को अलग कर लेते हैं।
टूटना क्या होता है!
ये टूट कर जुड़ने के बाद ही पता चलता है!
-muffadal sadikot