एक मुलाकात जिंदगी से
हंस कर मिली जिंदगी आज मुझे,
अधर गुनगुना रहे थे मधुर गीत,
अंग - अंग में छलक रहा था संगीत
देदीप्यमान मुख सुना रहा था
कथा नवीन प्रीत की,
सालों बाद मिले मन के मीत की,
खुद को भुला कर ढूंढ रही थी जिसे,
अपने ही अंदर पाया उसने उसे,
पाकर खुद को खिलखिला उठी जिंदगी,
साथ उसके लहलहा उठी धरती,
कूकने लगी कोकिला,
नृत्य करने लगी हर दिशा
झूमने लगी हवा,
हंसने लगी धरा,
किलकने लगी नदी,
क्योंकि हंस रही थी भूमि पुत्री।