तलब बेतलब से परे, आशियाँना हकीकी,
मिजाज़ ए महोबत,अब तुझे जाँना कहाँ है?
बेमतलब तो उठता नही ,कदम यहाँ यारा,
उठ कर चल दो ,सरहद पार जाना कहाँ है?
उलफत की रंगीनीयों को, कौन समज पाया
बेसमजी में यहाँ, समझदारी जाना कहा है?
राहे वफा चल दिये , कदम बढाते हुए आप,
छोड़ कर हकीक़त में, घौंसला जाना कहाँ है ?
दुर तक निगाहों मे परिन्दा ए दिल है यकीनन,
नूरानी अंदाज है भीतर , बाहर जानाँ कहाँ है ?
-મોહનભાઈ આનંદ