दिल में खीली है प्यार की हरियाली;
फिर दिलका एक कोना बंज़र क्युं है?
खीली हुईं है यादों की हसीन वादियाँ;
फिर लगता विराना सा ये मंज़र क्युं है?
मोसम आ गया है बसंत खीलने का;
फिर दिल में छाई हुई पतझड क्युं है?
हर तरफ देखो तो है खुला आसमान;
फिर दिल पर रखा यह पिंजर क्युं है?
घायल कर गई है मुझे तेरी हर अदा;
फिर उठती यह कातिल नज़र क्युं है?
वैसे ही हम मरते है तेरी हर बात पर;
फिर तेरे हाथों में खुला खंजर क्युं है?