My Wonderful Poem..!!!
ग़र हैं अपनी दुआओं में असर
तो मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो जम के जाम के दो घूँट
पी और मस्जिद को हिलता देख
हयात-ए-हस्ती तो औक़ात रखती
हैं पर यक़ीन की पुख़्तगी बीमार है
वनाँ आफ़ताब की किरणों को ही
ज़हन की तेज़ रफ़्तार से हारते देख
प्रभुको याद करना तो सबको हैं पर
प्रभु खुद याद करे,एसा कोई कमँ कर
आसान तो हरगिज़ नही माना मगर
मरतबा कभी यह भी तो पा के देख
दूआएँ भी मोहताज है हाथ उठाने की
पर असर आमाल से एसा पयदा कर
कि दूआओं को हाथ की नही सिफँ
ख़्याल करने पर ही मक़बूल होते देख
✍️🥀🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹🥀✍️