My Extremist Poem...!!
हमारी दीवानगी की संगीन
संजीदगी देखी कहाँ आपने
रिश्तों की किश्तों में भी दरारें
होती है पर देखी कहाँ आपने
बिलावजह तो माँ भी दूध नही
पिलाती, जिस माँ ने ममता को
धर्म फ़ैशन के नाम रौंदा उनकी
दूध की गाँठ देखी कहाँ आपने
ग़रीबी की फटीं चादर तले भूखे
पेट से सुर्ख़ आँचलों को दबा के
मासुम बच्चे की भूख को तिल तिल
मरते मिटते कभी देखा कहाँ आपने
अमीरी के अय्याशी चौलों में बिगड़ती
बहकती मय की बोतलों में ही डूबती
बद-बख्त बद-चलन जवान औलाद
को तील तील मरते देखा कहाँ आपने
आरज़ू उम्मीदें ममत्व की भी कुचलती
बाज़ार जिस्मों की भी हर रात सजतीं
हसरतें-ए-औलादों को वह तड़पती
जिस्मफरोश माँ देखीं कहाँ आपने
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