तीर
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कभी मीठे तो कभी तीखे हैं,आपके अल्फ़ाज़ो के तीर
सीधा निशाने पर लगे, चले जब आपकी बातों के तीर
मुसलसल कभी मेरे है होश घायल, गाह दिल घायल
जब आप चलाते हो आपकी क़ातिल निगाहों के तीर
शीरीं है अब तलक जानेमन,मेरे मन का क़तरा-क़तरा
गये वक़्त चलाये थे आपने, जो अपने लफ़्ज़ों के तीर
मैं घायल,शहर घायल सारे जहाँ का हर शख़्स घायल
हूर सी सूरत ने चलाये जब अपनी मुस्कुराहटों के तीर
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-सन्तोष दौनेरिया
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