"अरी ओ कम्मो, तूने ठाकुर जी को ऐसा क्या चढ़ा दिया कि वह तुझ पर इतने प्रसन्न हो गए कि तेरे लड़के की सरकारी नौकरी लग गई। जरा मैं भी तो सुनूं।
यहां हम तो रोज माखन, मिश्री, पेड़ों का भोग लगा, उनके नाम से कितना दान करते आए । फिर भी कान्हा जी ने हम पर ऐसी कृपा ना बरसाई। देख ना, मेरा पोता बिचारा कितने दिनों से एडी रगड़ रहा है। फिर भी कहीं नंबर ना आ रहा उसका!"
"अम्मा जी, हमारी क्या औकात! जो हम कान्हा जी को कुछ भेंट कर सके। सब कुछ तो उनका दिया है। हमारे यहां तो पकवान भी बस तीज त्योहारों पर बने हैं।
यह सब तो कान्हा जी की कृपा, लड़के की दिन रात की मेहनत, आप सब के आशीर्वाद और मेरी उन मौन प्रार्थनाओं का असर है, जो हमेशा उठते बैठते मैं आज तक करती आई हूं। शायद आज उनकी सुनवाई हो गई।"
सरोज ✍️
-Saroj Prajapati