गया जी धाम
मन मन में जहाँ ध्यान हो
कण कण में रमा जहाँ भगवान् हो,
समर्पण हीं जहाँ अर्पण हो
तर्पण में जहाँ दर्शन हो ।।
प्रेम ही जहाँ प्रकृति का अध्याय हो
प्रकृति हीं जहाँ संस्कृति का प्रयाय हो,
ज्ञान का जहाँ आलोक हो
धर्म में जो स्वर्गलोक हो ।।
विष्णु का जहाँ चरण हो
विश्व का जहाँ सृजन हो,
माँ मंगला का जहाँ स्तन हो
शिव जहाँ सत्य सनातन हो ।।
निरंजना जहाँ कूल तारती हो
फल्गू कि सुबह शाम जहाँ आरती हो,
बुद्ध की जो ज्ञान स्थली हो
विवेक का हीं जहाँ करनी हो ।।
क्षेत्र जिसका मगध हो
सम्राट जिनका अशोक हो,
उस गया जी धाम का क्या व्याख्या हो
जो संपूर्ण रूप में पूर्ण वेद ज्ञान हो ।।।
अनंत धीश अमन
गया जिला के 156 वाँ स्थापना दिवस में अपने जन्म स्थली को समर्पित भाव पूर्ण कविता ।