तेरी चाह
तमन्नाओंकी भीड़ में ख्वाहिशोंकी सजा मिली,
मुझे तनहाइयां मिली थोड़ी रुसवाईयां मिली।
तेरे वादे के दामन को पकड़ कर चल दिए थे हम
करे क्या हम की राह हमें अकेली खुद तन्हा मिली।
तेरे अश्कोंकी बूंदों को समेटा था मेरे नैनों में,
तेरे होठों के कंपनमें भी हमने सूर सजाए थे।
तेरे कदमोंकी आहट से धड़कता था यह दिल मेरा
तेरे कदमोंके रुकने से फिर मेरी धड़कन तन्हा मिली।
तमन्नाओंकी भीड़ में ख्वाहिशोंकी सजा मिली,
मुझे तनहाइयां मिली थोड़ी रुसवाईयां मिली।
-डाॅ.सरिता (मानस)