# कविता ***
# विषय .जिदंगी ***
जिदंगी अब मुझें ,डराना छोड़ दें ।
धुट धुट कर ,जीना छोड़ दें ।।
बहुत रुलाया तुने ,अब रुलाना छोड़ दें ।
भाग्य की तकदीर ,पर मुझें जिलाना छोड़ दें ।।
मैं कर्मशील अपने ,हाथों भाग्य लिख सकता हूँ ।
अब मुझें दुसरों के ,सहारे जिदंगी जिलाना छोड़ दें ।।
धरों में बैठ कर ,बहुत रोया अपने जिवन बनाने ।
पर अब कर्म करने ,से मुझें भयभीत करना छोड़ दें ।।
संधर्ष बिना कुछ ,जीवन में कोई पाता नहीं ।
अब मुझें जिदंगी से ,लड़ना सीखने दें ।।
हवा के झंझवात तो ,आते ही रहेगें ।
अब उनसे मुझें ,डराना छोड़ दें ।।
-Brijmohan Rana