# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .संधर्ष "
# कविता ***
संधर्ष ही जीवन ,की कहानी होती ।
संधर्ष बिना जीवन ,निर्थक जुबानी ।।
नन्हीं चीटीं सौ बार ,दिवार पर चढ़ती ।
चढ़ती गिरती पर ,मंजिल पर पहुँचती ।।
उसकी रंगों में ,साहस वह भरती ।
चढ़ना उतरना उसे ,कभी अखरता नहीं ।।
इसलिए वह विजय ,श्री पाती ।
मानव एक पल में ,हार जाता ।।
अपने भाग्य को ,कोस कर बैठ जाता ।
मिलते नहीं मोती ,छिछले पानी में ।।
इसलिए उसे कुछ ,नशीब होता नहीं ।
संधर्ष बिना जीवन ,सुहाना बनता नहीं ।।
संधर्ष ही श्रेष्ठ ,चोटी तक पहुँचाता ।
संधर्ष से ही जीने ,का मजा आता भी ।।
-Brijmohan Rana