इन्सान को इन्सान का, कभी लक्षण नहीं भाया;
कभी मोटा नहीं भाया,कभी पतला नहीं भाया ।
कभी श्वेत नहीं भाया,कभी अश्वेत नहीं भाया ;
कभी हँसना नहीं भाया,कभी रोना नहीं भाया ।
कभी समतल नहीं भाया, कभी पर्वत नहीं भाया;
कभी झरना नहीं भाया,कभी समुंदर नहीं भाया ।
कभी जननी नहीं भाई,कभी पिता नहीं भाये ;
कभी पुत्री नहीं भाई,कभी पुत्र नहीं भाया ।
कभी शासन नहीं भाया,कभी प्रशासन नहीं भाया;
कभी बहिन नहीं भाई,कमी भाई नहीं भाया ।
कभी अंधेरा नहीं भाया,कभी उजाला नहीं भाया;
इन्सान को इन्सान का,लक्षण नहीं भाया ।।
#लक्षण