My wonderful Poem...!!!
यारों मुझे हो क्यूँ गरज़ कोई
किसी भी बुलंद आसमान से
ज़मीं पे साथ जब मेरे सितारा
ख़ुद चल रहा हर पल हर वक़्त
पयदा होते ही उसने दिया साया
प्यारी माँ ओर छाँव बाबुल की
फिर भी मुझे हो क्यूँ गरज़ कोई
किसी ग़ैर बाग़बान ओर चमन से
हर साँस-ओ-धड़कन के लिए
देते गिज़ा-ओ-ओकसिज़न भी
फिर मुझे हो क्यूँ गरज़ कोई
जालसाज़ी-बेईमानी या छल से
क़तरा-क़तरा दाना-दाना या
लगे मण-मण पहुँचे अन्न कण
फिर मुझे हो क्यूँ गरज़ कोई
किसी चढ़ावों-चादर या फ़ुल से
है कौनसा पल लेते नहीं खबर
क्या प्रभुजी ही काफ़ी नहीं है
फिर मुझे हो क्यूँ गरज़ कोई
किसी पंडित-मौलवी-पादरी से
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