खो दिया है क्या खुद को,
जो ऐसे विलाप करतें हो,
क्या जिंदगी सस्ती है,
जो खताएं बेहिसाब करते हो??
तुम बींच भंवर में फंस कर,
किनारे के ख्व़ाब रखते हो,
टूटती हुई कश्ती से,
सात समंदर पार करते हो??
कहीं औकात तौल रहे हो,
कहीं जज़्बातो से खेल रहे हो,
कहीं सिक्कों की खनक पर,
लाशों को जिंदा रख रहे हो....
जिंदगी के इस समर में,
क्या यें "मिसाल" रखते हो,
ठोकर पर मानवता को,
और ठोकरों में इंसान रखते हो??
माना, सार्वभौम हो तुम,
फिर भी इस काफ़िले के,
पहरेदार लगते हो....
जो हैं ही नहीं तेरा,
गुमान उस पर कर,
फ़कीर समान लगते हो.....
सोंच बस इतना ही,
क्या सब शाश्वत है,
गर है, तो कर फ़र्क,
नहीं है, तो क्यूँ,
दुनिया के समाने,
एक नापाक सी,
"मिसाल" रखते हो.....???
खुद से ख़ुदा,
ख़ुदा से खुदाई,
दो दिन का मेला हैं,
मौत बोल किसे नहीं है आई??
क्यूँ खोखली दलीलें,
दिन रात देते हो,
हर तरफ़ इशारा हैं,
समझ ही जाओगे,
इतने तो समझदार लगते हो.....!!!
#मिसाल