अधिकार ? कौन सा अधिकार ?
कहां का अधिकार ?
वही जो हर मां को दिया जाता है ,
अपनी संतान को संभालने का ,
लेकिन एक शर्त पर अगर संतान पुत्र हो !
या वही हक! जो नए घर का शुभ मुहूर्त करने पर,
उसे जिम्मेदारी सौंपी जाती है
कि आज से हर सदस्य की सेवा करनी है निस्वार्थ भाव से ।
या फिर वही अधिकार जब पूछा जाता है,
अपनी शादी में किस रंग का जोड़ा पहनोगी ?
हा अगर सवाल है जीवन साथी का,
तो हमारे समाज में यह जायज नहीं ।
क्या वही हक ? जो बंधारण के ,
कागजों में धूल खाए हुए हैं,
जब लोग अखबार की सुर्खियां देख
महिला संरक्षण के लिए कानून को दोषी मानते हैं ।
अचानक सारे अनुचित अत्याचारों की सूची बनाई जाती
मोमबत्ती नारेबाजी कुछ दिन महीनों चलती !
न्याय न मिलने पर वहीं पीड़िता पर उंगलियां उठती !
अधिकारों को ठुकरा कर हर फर्ज स्त्री निभाती !!