स्वर्ण कलश भर लाई रथचढ धानी चूनरि ओढ प्रिये ।
कौन देश की विहग सुन्दरी मनमोहक आभास प्रिये ।।
तन चंदन चंचल भरि नैना शुभ्र वस्त्र परिधान प्रिये ।
मुख पर है लावण्य टपकता हास और परिहास प्रिये।।
स्वर्ग सुन्दरी सजधज आई प्रमुदित सुख-शांति प्रिये।
गागर सागर से भरि लाई अविरल मदन कांति प्रिये ।।
धीमे-धीमे उतर रही ज्यों छवि बन सोलह श्रंगार प्रिये ।
धरा प्रफुल्लित अपलक देखे तेरा अनुपम प्यार प्रिये।।
तमस मिटाके उज्ज्वल होके भरी ह्रदय में प्यास प्रिये।
मन मोहिनी स्वरूप बनाकर जग पर करती रास प्रिये।।