गीत
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हे केशव! तुझ में बश जाऊँ,
मन मंदिर में तेरा घर बनाऊँ,
तू सवारियां हैं बड़ा निर्मोही,
मैं तो अपनी सुध - बुध खोई।
लागी लगन लहर लहर लहराऊँ,
मन मंदिर में मोहन को बसाहूँ,
झाँकी देखन को मेरा मन तरसे,
अखिया मेरे सावन सी बरसे,
विरह में तेरे रात - दिन रोई.....
बंधन बाँध बावारी बन भटकू,
प्रेम मगन अब केशव को ढूँढू,
जाने कहाँ छुपा है तू सवारे,
तुझ बिन हम अब बने बावारे,
मुझ को सुझे ना अब कोई...
सर से चुनरी सरक सरक जाये,
मोहे अब लोक लाज्ज ना आये,
खोज खोज तुझे जब मैं हारी,
तब खुद में देखी झाँकी तुम्हारी,
निहार निहार मन पुलकित होई....
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित