ओ अंत!
तुम पर्याय हो...आरम्भ के
आरम्भ...नवीन अवसरों का
नवीन संभावनाओं का..
नवीन लक्ष्यों का...
तुम पर्याय हो ...निर्माण के
निर्माण... भविष्य का
विश्व का...सृष्टि का....
तुम पर्याय हो..पुरातनता के
पुरातनता... मूल्यों की ..
संस्कारों की..सभ्यताओं की
अंत भय नहीं... विनाश नहीं
नकारात्मकता नहीं...
प्रत्येक अंत है प्राणदायिनी शक्ति,
ऊर्जा,आशा,और ....
सकारात्मकता से परिपूर्ण...
निर्भय हो स्वागत करो
अंत का....
पुनः आरम्भ के लिए....


# मधुमयी#




#letters #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi

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Hindi Poem by Mohini Rani : 111533763

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