दशन,छलना,द्वेष,पीड़ा
हर निठुर आघात सह कर,
प्रेम-मधु का पान कर
मधुमयी मैं हो गयी हूँ।
हों भले अंगार पथ में
पांव में छाले पड़े हों,
रात -दिन का मार्ग तय कर
लौटी न पीछे,जो गयी हूँ। प्रेम-मधु का.......
जब कभी जीवन-सफर में
गहन तम छाया निशा का,
पुष्प-शैय्या ही समझकर
कंटकों में सो गयी हूँ। प्रेम-मधु का पान कर.....
कटु यथार्थ से व्यथित मन
जीवन-समर में थकित है तन,
किंतु आशा-दीप धर कर
मधुर स्वप्न में खो गयी हूँ।
प्रेम मधु का पान कर
मधुमयी मैं हो गयी हूँ......
-मधुमयी
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