जिस दिन जिंदगी में सब बोझिल लगने लगे उस दिन ये सोचना की अगर अगले पल आप के समय मृत्यु खड़ी हो और कहे चलो बहुत हुआ अब
तो क्या आपको कुछ न कर पाने का अफसोस होगा या मन शांति से मृत्यु को स्वीकार कर लेगा?
यदि अफसोस होगा तो बहुत कुछ अभी बचा है करने को वो करिये, यदि मन शांति से मृत्यु को स्वीकार करने को तैयार है तो आप या तो जीवन मे बहुत दुखी है जिसे इतने दुख मिले जो जीवन से प्यार बचा नही या आप मन से सन्यासी है जिसे जन्म, मरण, पुण्य ,पाप इत्यादि से कोई फर्क नही पड़ता.....अब चयन आपका
आपको दुखी बनना है या सन्यासी....✍🏼