जीवन की आपाधापी में जब मन बोझिल हो जाये
जब आने वाले कल की सारी आशायें धूमिल हो जायें
अंधकारमय हो जब पथ, मुश्किल हो आगे बढ़ना
जब आँखो से मंजिल की तस्वीरें ओझल हो जायें
तब धीरज का संकल्पों से संवाद जरूरी होता है
मन में आशा का एक दीप जरूरी होता है।
जब अपनों की अपनों से दूरी बढ़ जाती है
जब रिश्तों की डोरी तन कर कभी टूटने आती है
एक छत के नीचे होकर भी जब हृदय अकेला होता है
दिन लम्बा हो जाता है और जब रातें जगती हैं
तब अपनों का अपनों से संवाद जरूरी होता है
मन में आशा का एक दीप जरूरी होता है
अभिनव सिंह "सौरभ"