मंज़िल बहुत दूर हे ।
तुम अकेले चल शकों तो चलो ॥
हर मोड़ पे बुनियादी ठोकरें हे ।
तुम पार कर शकों तो चलो ॥
रास्ते बहुत ही हे दुनिया के ।
तुम अपना ढूँढ शकों तो चलो ॥
वो रंगीन ख़्वाब, वो तुम्हारी नादानी ।
तुम त्याग शकों स्वार्थपरता तो चलो ॥
ना दिन का उजाला, ना रातों का अंधेरा ।
महेसुस ना कर शकों तो चलो ॥
अंबर चूमे कैलाश के पथ पर ।
तुम बिखर ना शकों तो चलो ॥