कटेंगे पर मेरे फिर भी मेरी परवाज़ बोलेगी
मेरी खामोशियों में भी मेरी आवाज बोलेगी
कहाँ तक तुम मिटाओगे मेरी हस्ती मेरा जज़्बा
ये मिट्टी ज़र्रे ज़र्रे से मुझे जाँबाज़ बोलेगी
अगर हालात न बदले वो दिन भी जल्दी आयेंगे
तुम्हारे खौफ़ से दुनियाँ तुम्हें नासाज़ बोलेगी
नहीं अब शाजहाँ कोई किसी के हाथ जो काटे
तुम्हारे जुल्म के किस्से कभी मुमताज़ बोलेगी
तुम्हें महफूज़ रहना पर तुम्हें घर भी जलाना है
तुम्हारी फितरतों हैं क्या