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"संचित" की थी हमने जो यादें,
हवा के झोंके माफिक बह गई.
अगर पक्के थे बुलंद इरादे,
तो नजाने अब कहां चली गई.
सच्चे थे वह सारे किए हुए वादे,
तो मौके पर क्यों मुकर गई.
पीठ लगाए बैठे हैं खंजर दे दे,
कहेंगे दुश्मनी थी निकालके गई.
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#संचित