स्त्री को जितना बाँधोगे बाहर से
अपने तर्कों -कुतर्कों में
वह उतनी ही छूटती
चली जाएगी भीतर से
जितना धकेलोगे पीछे की ओर
वह उतनी ही जिद्द से
उगती-अंकुराती चली जायेगी
छूती जाएगी ऊँचाई को
और तुम्हारे चारों ओर
छोड़ती जाएगी मानवता के
गहरे निशान
प्रकृति समाहित है
स्त्री में अपने मौन रूप से
और स्त्री प्रकृति में
जज़्ब है अपनी पूरी
आवाज़ के साथ ।
-कल्पना
चित्र :अनु प्रिया