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My New Feelingly Poem ...!!!
दुल्हन सी सजी थी, वह गहनों से लदी थी
लोगों की हलचल में, एकांत सी खड़ी थी
हल्की-सी मुस्कान चेहरे पर ऐसी खिली
मानों घबराहट की बूंद उसे कहीं न मिली
चौ-तरफ खुशहाली थी,उसके मनमें भी
नवजीवन की हरियाली थी फिर भी थी
थी हल्की सी हिचकिचाहट भी तो कहीं
नवजीवन कैसा होगा..? यह खबर न थी
घर ख़ूने में व्याकुल सी बैठी वह थी ऐसे
परिणाम-प्रतिक्षामें हो छात्र-प्रतिमा जैसे
मासूम मन में उसके थे प्रश्न तो अनेक,
उत्तर ना मिलते उसको कहीं से भी एक
अगले पलमें जाना था उसको,कुटुम्ब में
ऐसे जहां वह जानती तक थी न किसी को
यह एक ख्याल सताता रहा उसे तब तक
डोलीमें बैठनेका वक्त न आया जब तक
बेख़ुदी में न चाहकर भी हुआ कुछ ऐसा
मोती-से आंसुओ से भर गया उसका गला
इसके आगे वह कुछ भी कह न सकी,
भीगी पलकों से ही बस विदा हो चली
जहाँ संग सखियों के खेलीं थीं होली
जिस आँगन में खेलीं आँख-मिचौली
पली पढ़ी बड़ी हूई बाबुल छत्र-छाया में
उस दहलीज़को अलविदा कर चली डोली
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