हास्य व्यंग्य रचना "
# विषय .जमाईराजा ***
पहली बार जमाईराजा ,ससुराल चलें ।
सुदंर शहनशाह की ,तरह बनठन के चलें ।।
पांव में बहुमूल्य ,जुतें पहने चकाचक से ।
महकता इत्र छांटा ,महका के ।।
धर के दरवाजे पहुँच ,टेर लगाई रे ।
धर से नौ नौ सालीयाँ ,स्वागत को आई रे ।।
जुतें उतार कर पैर धो कर ,आदर से धर में ले गयी रे ।
चमचमाती कुर्सी ,बहुमूल्य बैठने दी रे ।।
जैसे ही जमाईराजा ,कुर्सी पर बैठे रे ।
धड़ाम से नीचे गिरे ,नानी याद आई रे ।।
शरीर का कचुबंर ,बन गया रे ।
फिर भी हाथ जोड़े ,हंसते खडे हुए रे ।।
फिर जमाईराजा को ,खाने बिठाया रे ।
भोजन देख कर ,मन मयूर नाच उठा रे ।।
जैसे ही भोजन का एक ,कोर मुँह में रखा रे ।
आँखों में से पानी ,और मुँह फटा सा रह गया रे ।।
दाल में गजब की ,मीर्ची डाली रे ।
जब सोने के लिए ,एक सुदंर खाट बिछाई रे ।।
जब जमाईराजा सोने गये ,तो खाट टूट गयी रे ।
धड़ाम से नीचे गिरे ,पसलीयाँ टूटी रे ।।
उठ कर धर की ,ओर चुपचाप भागे रे ।
सालीयों कि शरारत ने ,दिन में तारे दिखाये रे ।।
इस धटना के बाद ,कभी लौट के नहीं आये रे ।
इस धटना को याद कर ,ससुराल जाने से डरते रे ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।