#Falcon is icon..!!!
My Meaningful Poem...!!!
मान-मर्यादा कला-संस्कृति
संस्कार की मुहूर्त-सी दिखती थी
नारी थी में हर रुप हर शृंगार में
कल तक नारी-सी ही दिखती थी
कड़वा-चौथ तुलसी-विवाह या
हो त्योहार दीपावली का सजती थी
सँवरती भी थी पर हर पहरन में
हर वक़्त ख़ानदानी-ही छलकती थी
बड़ों से प्यार छोटे से दुलार पाती थी
हर काम में लाज का गेहना पहनती थी
पर हाय रे.!! आँधी पश्चिम संस्कृति
कि क्या चली पल्लू सर से सरकते हुए
सिकुड़ते सिकुड़ते इतना सरका कि
मान-मर्यादा लाज-हया सब ख़्वाब हुए
फ़ैशन के बबाल-ओ-देखादेखी चालसे
गिरते गिरते संस्कृति यहाँ तक गिरीं कि
आफ़त-बला जादू-टोना ईर्ष्या-भाव
जैसे कि रोज़मर्राकी जीदगींमें आम हुए
प्रभु ही जानें कहाँ जा के रुकेगा सफ़र
निम्नतम जिस्मफरोशी पेशें आम हुए
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