कोई मुजे ये बतलाय ज़रा, की चाहत को समजा सके, वो अल्फाज़ मैं कहाँ से लाऊ ? दिदार~ए~सनम जब भी हो, तो चाहत का ईज़हार कर सकूँ, वो ज़ज्बात मैं कहाँ से लाऊ ? मैं तो उन्हे अपनी ज़िंदगी बनाना चाहता हूँ, लेकीन उसी ज़िंदगी मे कभी, निगाहें अश्क़ ना बनू, एसी विलक्षण सी चाहत मैं कहाँ से लाऊ ?
#विलक्षण