** कविता **
# विषय .पनधट "
आज मुझें पनधट ,प्यासा ही लग रहा था ।
उसकी सुहानी यादें ,न जाने कहाँ खो गयी ।।
बेचारा अकेला ही ,झर् झर् आंसू बहा रहा था ।
एक समय था वहाँ ,धुँधरुओं की झंकार बजती थी ।।
चूड़ीयों की खनखनाहट से ,वातावरण झंकृत हो जाता था ।
मिट्टी के धड़ो की खनखनाहट ,से पनधट गुंज उठता था ।।
अपने सहेलियों के मिलन की राह ,में बेताब लगता था ।
पनधट का नजारा देख ,हर किसी का दिल नाच उठता था ।।
वो सहेलियों की बातें ,बडी सुहानी लगती थी ।
ढेर सारी शिकवे शिकायत ,युवतियाँ पनधट पर करती थी ।।
वो हंसी के ठहाके ,वो सास ननद की बातें करती थी ।
पनधट उनकी बातें सुन ,खुश होता था ।।
युवतियों को फुरसत के पल ,यही तो मिलते थे ।
कुछ सुख दुःख की ,बातें यही तो होती थी ।।
आज बरसों हो गये ,पनधट सूना हो गया ।
अपनी यादों को याद कर ,पल पल आंसू बहाने लगा ।।
मैंने कहा पनधट ,इस प्रकार उदास मत हो ।
तेरे भी दिन फिरेगें ,जरा धैर्य से काम लें ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।