एक मौत ऐसी भी.....
#मृत
आज मैं मर गया, पड़ा है मृत शरीर आंगन में,
रो रहे सब मेरे गम में? या आसुं है ये दौलत पाने के!
चार कंधों के इंतजाम में, मैं जिंदगी जीना भूल गया,
जा भी नहीं सकता अब उस घर में, जो कहने को था मेरा
जलाने की मुझको जल्दी है, अब ना कोई काम मेरा।
दुख मुझे था, सबको छोडकर जाने का,
पर एक खुशी भी मन में छुटकर यहां से जाने की,
आराम मिलेगा बरसों बाद, छूटा जंजाल जिवन का,
मिलेंगी सांसे दो चैन की, मरने का यही फायदा रहा,
अब ना गिला है ना सिकवा किसी से,
ना कुछ पाने की उम्मीद, ना खोने का गम,
बस चरो तरफ बस हम ही हम।