गुज़र गया वो कारवां "वर्षा"......
जिसमें परदेसी मिलतें थें......
नया मोड़ देख आया हैं.....
इस मोड़ पें निशां, देख,
मंजिल के मिलतें हैं.......
कहीं बेगानो के बाज़ार में,
"प्रियन"जैसे अपनें मिलतें हैं
कहीं अपनों की भीड़ में,
बेगाने "उन" जैसे मिलतें हैं......
पल पल तुम्हारे पास था, जो
जिसमें हर पल ख़ास था, वो,
जिन्दगी को ऐसे पल अब,
कम मिलतें हैं......
तंग दिल के शहज़ादे यहाँ,
आसमां पर क़दम रखतें हैं,
कुचलनें स्वाभिमान किसी का,
हर पल वो दम रखते हैं.....
रंगीन सी शामों में,
बनावट के रंग कूछ यूँ घुलते हैं,
जर्रे जर्रे में झूठ और फरेब के,
जगमग दियें जलते हैं....
कुछ नहीं मिला,
सिवा रुसवाई के भरोसा कर,
इसीलिए आखरी शाम में जीवन की,
बस तन्हाई के गुल खिलतें है......!!!!!