सोचा तुझसे बात करूं
ख्वाहिश का इज़हार करूं
तू क्यूं तन्हा जीती है
प्यार जो मुझसे करती है
जो मेरी वो ख्वाहिश तेरी
तो फिर इन्कार क्यूं करती है
माना कुछ मजबूरी है
अपने बीच जो दूरी हैं
मन की अपने बात तो कह
तन्हा ही ना सब कुछ सह
सिर्फ तू ही नहीं है मेरी
तेरी जिम्मेदारियां भी है मेरी
क्या हुआ जो फर्ज तेरे बाकी है
तेरे साथ ये साथी है