# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .लापरवाह "
# छंदमुक्त कविता ***
लापरवाह अपनी ,लापरवाही से जीवन खोता ।
हर कार्य को ,ढ़ंग से कभी नहीं करता ।।
हर कार्य में ,असफल ही होता ।
फिर जीवन में ,अपने किए से शर्मसार होता ।।
लापरवाही कभी ,उसका जीवन निगल लेती ।
वह फिर भी ,जरा परवाह नहीं करता ।।
वह अपने उत्तरदायित्व ,को कभी नहीं समझता ।
लापरवाह का कोई ,विश्वास नहीं करता ।।
लापरवाह दूर की ,कभी नहीं सोचता ।
कहता बृजेश लापरवाह ,जीवन अपना व्यर्थ गंवाता ।।
बृजमोहन रणा ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।