ओ इच्छा तेरी चाह कभी खत्म क्यु नही होती
एक पूरी हो दूसरी हाजिर हो जाती है आखिर
तू इतनी अधिक चाहत लाती कहा से है
तेरा मन कभी भरता क्यु नही
न जाने दिल के कौन से कोने से
कभी भी वापस लौट आती है
थोड़ा तो सबर कर क्यू की तेरी वजह से ही ये
नाजुक दिल को सुख दुःख का पता चला है