बहुत कुछ लिखना है मुझे,
पर कलम साथ नहीं दे रही;
कलम को समजाता हुं तो,
दवात खतम होय जा रही;
दवात भरवा ली जो हमनें,
तो, काग़ज़ मील नहीं है रहे;
सब इक्ट्ठा कर लिया हमनें,
अब, अल्फाज़ सुझ नहीं रहे;
क्या लीखु? कैसे लीखु? में,
ये दोस्त भी तो नहीं बता रहे;
....✍️वि. मो. सोलंकी "विएम"