बारिश बूँदों में...
आज सिंक रहे थे भुट्टे
एक ठेले की सिगड़ी पर
वैसी ही बूंदे बरस रही थीं
जैसी उस साल बरसी थीं
जब हम बरसते मेंह में
पेड़ों की हरियाली के बीच
टहल रहे थे नम सड़क पर
पत्तों के बीच से टपकती
पानी की बूंदों में भीगते हुए
तभी सिगड़ी पर सिंकते
भुट्टों की सौंधी गन्ध में
रुक गए थे चटचटाते कोयले
की लपटों को सेंकते हुए
भुट्टा खाते हुए कर दिया था आगे
थोड़ी मिर्च डला नमक और
निम्बू लगाने को
तब हँसते हुए भुट्टे वाले ने
मिर्च नमक की पुड़िया में
बाँध दिया था आधा निम्बू भी
हम निम्बू के खट्टेपन के साथ
प्यार की मिठास का स्वाद लेते हुए
भीगते रहे शाम भर
और चलते रहे
प्यार से भीगी सड़क पर दूर तक....विनीता