खाट-बिछौना उठ गए
झड गए चबूतरे द्वार
अरूण का आगमन जो होना था
ऐसी है गांव के भोर की बहार।
हाथ धरा धरा(रखा)
तब ललाट धरा
ये इबादत है धरा की
उठ कर राम-नाम की हुई पुकार
ऐसी है गांव के भोर की बहार।
बच्चे-बडे जवान -बूडे
दांत को दातुन करत ठाढे(खड़े)
राम-राम अभिवादन का स्वर
कुल्ला कर तमहारी को दंडवत करें हाथ जोड़े
अब गायों को हुई पुचकार
ऐसी है गांव के भोर की बहार।
स्नान ध्यान कर हुआ कलेवा
चले उगाने फसल मेवा
आगे चले रखत(जानवर)किसान पीछे चलेवा
गायें खूब रम्भाए
ऐसी है गांव के भोर की बहार।