बँध दरवाजे के पीछे खामोश होकर बैठी हुई थी
तेरे ख़यालों की गहराईयों में डूबी हुई थी !
क्या रिश्ता है तेरा और मेरा समज नहीं पायी
तेरे इंतज़ार में दुल्हन बनके सजी हुई थी !
दिल मे बिठाके रखा था मैंने तुझे
आखिर कौनसे गुनाहो की सजा मुझे मिली हुई थी !
कोनसा नक़ाब पहनके बहार निकलू अब में ?
एक तेरी ही उम्मीद का श्रृंगार करके बैठी हुई थी !