Hindi Quote in Story by Kavita Verma

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डिनर के बाद किचन समेटकर वह अपने कमरे में आ गई थी। बच्चे अपने-अपने कमरों में चले गए थे मुकुल ड्राइंग रूम में टीवी देख रहे थे सासु माँ बेटे के साथ बैठने का सुख लेने के लिए इंग्लिश न्यूज़ चैनल की गिटर पिटर में भी हाथ में माला लिए बैठी थीं। कामिनी ने दिन भर की थकान को शॉवर में धो डाला। गीले बालों को टॉवल में लपेटे लेस की नीबू पीली नाइटी पहने वह आईने के सामने खड़ी हुई तो खुद के रूप पर मोहित हो गई। गोरा चंपई रंग बड़ी बड़ी आंखें थोड़ी छोटी लेकिन तीखी नाक भरे भरे होंठ जो दबे छुपे शरीर में उठने वाली हर लहर पर लरजते हैं सुतवां लंबी गर्दन और भरे भरे वक्षों के बीच गहरी रेखा में ऊँगली फेरते वह गर्व से भर गई थी। "बहुत खूबसूरत हो तुम क्या किसी को इतना सुंदर होना चाहिए ?" उसने आईने में नजर आने वाली गहरी  काली आँखों में झांकते हुए पूछा था और कोई जवाब न पाकर अपने बालों को टॉवल से आजाद कर गर्दन झटकते हुए पीछे पीठ पर फेंका था। दो-तीन अल्हड़ लटें दूसरी ओर से घूम कर उसके चेहरे को चूमने लगी थीं और उनके ऐसा करते ही चेहरे की लुनाई और बढ़ गई थी। देर तक कामिनी खुद को निहारती रही हाथों में क्रीम मलते पैरों को सहलाते कभी झुकते कभी मुड़ते शरीर पर बनने वाली रेखाओं को देखते वह मुकुल के कमरे में आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी। 
Kavita Verma लिखित उपन्यास "देह की दहलीज पर" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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Hindi Story by Kavita Verma : 111484815
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