A Short Hindi Poem
थक गया हूँ अब मैं, भार यह उठाते उठाते।
फिर भी बढ़ रहा, मैं मार्ग में आगे निरंतर॥
इन सभी बोझ तले दब कर मैं, टूट सा गया हूँ।
लगता हैं अपने आप ही, पिछे कही छुट सा गया हूँ॥
दिखती नही उम्मीद कही, हर क्षण यहाँ निराश हूँ मैं।
हुआँ अस्त जो सूर्य अभी, उसी के भीतर का प्रकाश हूँ मैं॥
संकट से घिर कर मैं, अपने ही व्यक्तित्व को भूल गया।
पता नही कैसे, यह सर इस तरह से झुक गया॥
नही, नही रुक सकता मैं, अभी पथ तो आगे बाकी है।
क्यों छोडू मैं आशा को, मेरा साहस ही तो एक साथी है॥
जो अस्त हुआ है सूर्य वह, पुनः उदय हो जायेगा।
मेरे एक आशा के प्रकाश से, सारा विश्व
आच्छादित हो जायेगा॥
- PRATHAM SHAH