बालकनी में जब वो टॉवल सुखा रही थी तो किसी के घर से गाने की आवाज़ आ रही थी, “रिमझिम गिरे सावन सुलग –सुलग जाए मन, भीगे आज इस मौसम में ...” वो देर तक बालकनी में खड़ी बारिश देखती रही, देखती रही और मुकुल उसे बेड रूम में बैठ कर अकेले मुस्कुराते गुनगुनाते खुद से लजाते हुए देख रहा था | उसे कामिनी को खुश देखकर खुश होना चाहिए था पर वो हतप्रभ था | कोई संभावित आशंका उसे झकझोर रही थी और वो निरुपाय सा बस साक्षी बनने को विवश था |
Kavita Verma लिखित उपन्यास "देह की दहलीज पर" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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