चंद कदम चलू मे और दीखता एक नज़ारा है
लकीरो के खेल मे लगता वोह हारा है
बदन आधा नंगा उसका जैसे किसी मुसीबतों का मारा है
ढंग से बात तो करता वोह फिर भी सब ने पागल माना है
कुछ ख्वाहिश लगती थी उसकी इसलिए वोह चिल्लरो पे चिल्लाया है
चाहता था कुछ इंसानों से वोह
सायद खुद से खुद बेसहारा है