Prem_222:
हम तेरे शहर में आये हैं, मुसाफ़िर की तरह,
सिर्फ़ एक बार मुलाक़ात का मौक़ा दे दे
हम तेरे शहर में आये हैं, मुसाफ़िर की तरह...
मेरी मन्ज़िल है कहाँ, मेरा ठिकाना है कहाँ,
सुबह तक तुझ से बिछड़कर मुझे जाना है कहाँ,
सोचने के लिये एक रात का मौक़ा दे दे..
हम तेरे शहर में आये हैं, मुसाफ़िर की तरह...
अपनी आँखों में छुपा रखें हैं जुगनू मैं ने,
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आँसू मैं ने,
मेरी आँखों को भी बरसात का मौक़ा दे दे...
हम तेरे शहर में आये हैं मुसाफ़िर की तरह...
आज की रात मेरा दर्द-ए-मुहब्बत सुन ले
कँप-कँपाते हुये होंठों की शिकायत सुन ले
आज इज़्हार-ए-ख़यालात का मौक़ा दे दे...
हम तेरे शहर में आये हैं,…
#मुसाफिर