हवाओं पर तुम्हारा,
नाम लिख कर देखता हूं,
तो वह भी हो जाती हैं उग्र,
दूसरी किसी की,
उपस्थिति से व्यग्र,
बिखेर देती हैं उसे फिजा में।
मैं चुनना चाहता हूं अक्षरों को
जो छुप जाते कहीं हैं।
शेष रहती हैं बस मात्राएं
कोई भी शब्द फिर,
बनता नहीं है।
ठहरे पानी पर,
उकेरता हूं चित्र तुम्हारा,
तो वह समेट लेता है
उसका समग्र, स्वयं में,
तुमसे बस,
मैं ही प्रेम करता हूं,
मैं जीता था,
अभी तक,इस भरम में।।
#Radical /उग्र